महंगाई को लेकर जिस तरह से हो हल्ला मचाया जा रहा है, उसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता। आख़िर अपने प्रधानमंत्री अर्थशास्त्र के ज्ञाता, अपने गृहमंत्री अर्थशास्त्र के पंडित, वित्तमंत्री अर्थशास्त्र के विद्वान। इस स्थिति में अर्थशास्त्र गड़बड़ा जाय, असंभव ही नहीं बल्कि बिल्कुल असंभव है। हो सकता है कि थोड़ी बहुत महंगाई सीमा पार से घुसपैठ की हो, लेकिन इसमें इन तीन राजनेताओं का दोष नहीं बल्कि रक्षामंत्री का दोष नज़र आता है, जो महंगाई के घुसपैठ को रोकने में अक्षम साबित हुए। जहां तक मुझे लगता है, हालांकि यह मेरा व्यक्तिगत मानना है, तीनों विद्वान राजनीतिज्ञ देश से गरीबी का नामोनिशान मिटाना चाहते हैं, और यह तभी संभव है जब देश में एक भी गरीब ना रहे। जब देश में महंगाई नहीं रहेगी तो हर गरीब को दोनों टाइम ना सही एक टाइम रोटी, नमक मिल सकती है। इस तरह गरीब एक टाइम ही सही खा-पी के जिन्दा रह सकता है। पहले भी लोग दाल-रोटी, रोटी-प्याज जैसे कंबिनेशन के सहारे गरीबी को जिन्दा रख लेते थे। लेकिन अगर गरीबी को समूल नष्ट करना है तो व्यवहारिक है कि पहले गरीब को हटाना पड़ेगा। अपने लोकतांत्रिक देश में आप कानून बना के किसी गरीब को हटाने की कोशिश करेंगे तो विपक्षी दल विरोध करके उसका राजनीतिक फायदा उठा सकते हैं और आने वाला चुनाव जीत के सरकार बना सकते हैं। क्योंकि गरीबों की जनसंख्या देश में इतनी तो है, कि वो सरकार बदल दें। इसलिये ही अपनी सरकार महंगाई बढ़ा के गरीबी हटाने का प्रयास कर रही है। क्योंकि महंगाई के बाद अब दाल और प्याज के बारे तो गरीब सोचता ही नहीं, ले देके रोटी नमक का कंबिनेशन बचा रह गया है। तो सरकार का सोचना सही है कि अगर गरीबी को देश से सचमुच हटाना है तो इस कंबिनेशन को भी तोड़ना ही होगा। अगर महंगाई बढ़ी है तो लोगों को प्रसन्न होना चाहिए कि देश से गरीबी जल्द हटने वाली है। क्योंकि तीनों अर्थशात्रियों का गरीबी हटाओ अर्थशास्त्र का सूत्र बिल्कुल सही बैठ गया है।
गरीबी में दाल गलाना पहले ही मुश्किल हो गया था। अब तो आग जलाना ही मुश्किल हो गया है। यानी धीरे धीरे ही सही गरीब दुनिया से हटने की राह तैयार हो चुकी है। यदा कदा कालाहांडी, बुंदेलखंड, बिहार और देश के कई भागों से भूख से मौत की ख़बर आती है। तो कहीं से किसानों के आत्महत्या की ख़बर आती है। तो यह महज इत्तेफाक नहीं है बल्कि सरकार के मेहनत का नतीजा है। वैसे भी महंगाई को लेकर सरकार अकेली नहीं है। विपक्ष भी पूरा मनोयोग से सहयोग कर रहा है। महंगाई पर चर्चा के समय जिस तरह पूरा विपक्ष वाक आउट कर गया, उससे साबित हुआ कि महंगाई जैसे फालतू मुद्दे पर सरकार के मुंह लगना विपक्ष की बेइज्जती है। अपने सांसदों और मंत्रियों को जिस तरह से हवाई जहाज के इकोनामी क्लास में यात्रा कराके सरकार ने अरबों रूपये बचाये और उसके बाद खरबों रूपये बचाने के लिये सरकार ने जिस तरह से सांसदों के परिजनों को मुफ्त हवाई सफर कराने का बिल सदन के पटल पर रखा, उस दौरान एक भी सांसद वाक आउट नहीं किया। क्योंकि इससे देश को अरबों का लाभ होने वाला है। अब सरकार जब गरीबी हटाने में लगी है तो ऐसे कदम उठाकर पूरे विश्व को तो दिखाना ही होगा कि देखो हमारे राजनेताओं का परिवार गरीब नहीं है। यानी गरीबी हटाने की सबसे सकारात्मक शुरूआत। अब सरकार जब गरीबी के साथ गरीब हटाने की ठान ही चुकी है तो उसका दायित्व बनता है कि इस गरीबी का हवाई सर्वेक्षण करवाये। इससे फायदा होगा कि जहां जहां भी गरीब के साथ गरीबी दिखेगी सरकार को हटाने में सहूलियत होगी। आखिर बेचारी बोतल में पानी पीने वाली सरकार कहां कहां लोगों को बाल्टी भर और वो भी शुद्ध पानी उपलब्ध कराये। हवाई जहाज से यात्रा करने वाले हमारे नेता कहां कहां सड़कें बनवायें। कोठियों में रहने वाले नेता कहां कहां खपरैल लगवाते फिरे। वैसे भी हमारी सरकार पहले से ही गरीबी हटाने के लक्ष्य को लेकर चल रही है तभी तो किसान की सारी उपज के दाम का निर्धारण सरकार करती है, लेकिन किसानों से लिये गये उपज की बिक्री का निर्धारण व्यापारी स्वयं करता है। तो गरीबी हटाने के लिये सरकार कटिबद्ध है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम उसका दिल खोलकर साथ दें और भूख जैसी बीमारियों से मरे जो शायद किसी अमीर को कभी नसीब नहीं होगा! यानी अमीर हम गरीबों जैसा खुशकिस्मत नहीं है!