रविवार, 30 दिसंबर 2012

एक अ‍पवित्र तुलसी कथा!

तुलसी सिंह राजपूत ने किया कोर्ट में सरेंडर, जेल भेजे गए : किसी भी अखबार ने नहीं छापी तुलसी के सरेंडर की फोटो : हिंदुस्‍तान तथा जागरण के पत्रकारों ने 'आज' के फोटोग्राफर से डिलिट कराईं तस्‍वीरें : ये वो तुलसी नहीं हैं जिन्‍हें हम अपने घरों में पूजते हैं, बल्कि ये वो तुलसी हैं जो अपनी हरकतों से इस पावन नाम को भी अ‍पवित्र करते हैं. इनकी अपवित्र जड़ें अखबारों के पवित्र पन्‍नों को बदरंग कर डाला है. आइए अब आपको सुनाते हैं बेगैरत पत्रकारों के तुलसी भैया की कथा. चंदौली में चार फरवरी को कांग्रेस के पर्यवेक्षक एवं महाराष्‍ट्र से एमएलसी भाई जगताप पर जिला मुख्‍यालय पर जानलेवा हमला तथा फायरिंग करने वाले तुलसी सिंह राजपूत ने कल सायंकाल चंदौली के सीजेएम कोर्ट में आत्‍मसमर्पण कर दिया.

सीजेएम कोर्ट ने तुलसी सिंह को जमानत देने से इनकार करते हुए 14 दिन की न्‍यायिक हिरासत में भेज दिया. कोर्ट मुकदमें की अगली सुनवाई 24 फरवरी को करेगी. उल्‍लेखनीय है कि कई संगीन मामलों में आरोपी और अब्‍दुल करीम तेलगी के निकट सहयोगी तुलसी सिंह राजपूत ने पर्यवेक्षक के रूप में चंदौली आए भाई जगताप के ऊपर अपने समर्थकों के साथ हमला कर दिया था. जगताप को
तुलसी
पुलिस कस्‍टडी में आसमानी शर्ट में खड़े तुलसी सिंह राजपूतकाफी चोटें आई थीं. दस लोगों के खिलाफ चंदौली कोतवाली में तुलसी के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया गया था. कांग्रेस से तुलसी को निकाल भी दिया गया था. रिपोर्ट के बावजूद पुलिस तुलसी का पता लगाने या गिरफ्तार करने में सफल नहीं हो सकी. वे इत्मिनान से पूरे लाव लश्‍कर के साथ सीजेएम कोर्ट में आत्‍म समर्पण कर दिए. इस बार भी तमाम बड़े-छोटे अखबारों में काम करने वाले उनके शुभचिंतक उनके साथ खड़े रहे. खबर देने की मजबूरी न होती तो शायद उनके ये अखबारी सहयोगी समर्पण की खबर भी प्रकाशित नहीं करते. किसी भी बड़े अखबार ने तुलसी के आत्‍मसमर्पण की फोटो प्रकाशित नहीं की. कथित तौर पर हिंदुस्‍तान और जागरण के ब्‍यूरोचीफों ने दैनिक आज के फोटोग्राफर अभिलाष पाण्‍डेय के कैमरे से फोटो भी डिलीट करा दी. फोटो लेने के दौरान अभिलाष के साथ तुलसी के समर्थकों ने दुर्व्‍यवहार भी किया.
तुलसी सिंह राजपूत, चंदौली जिले के ऐसे नवधनाढ़यों में शामिल हैं, जो अचानक किसी चमत्‍कार के चलते उद्यमी बन जाते हैं. कुछ बड़े अखबारों के भी खास हैं. कुछ पत्रकारों के भी खास हैं. लेकिन राजपूत की असली कहानी किसी परीकथा से कम नहीं है. रोडपति से करोड़पति बनने तक के सफर में कई काले-पीले काम करने के आरोप इनके ऊपर हैं. तमाम सही-गलत आरोप होने के बावजूद ये बनारस से प्रकाशित होने वाले तमाम अखबारों के प्रिय हैं. अपने पैसे के बल पर ही तुलसी ने इन अखबारों तथा इनके पत्रकारों को रखैल बनाकर रखा है. तभी तो खबर छापने से पहले तुलसी का पक्ष प्रमुखता से रखा जाता है. अपने को आम जनता की आवाज कहने वाले बनारस तथा जिले के तमाम पत्रकार तुलसी सिंह के चहेते हैं. इसके एवज में तुलसी इन्‍हें उपकृत भी करते रहते हैं. अखबारों को तो विज्ञापन देते ही हैं व्‍यक्तिगत रूप से भी चंदौली के कुछ खास पत्रकारों की सेवा भी करते रहते हैं. और ये पत्रकार इनके आगे-पीछे पालतू जानवर की तरह घूमते रहते हैं.कक्षा आठ तक पढ़ा तुलसी नाम का एक युवक चंदौली से कमाने के लिए मुंबई जाता है. मेहनत करता है, दूध बेचता है. लेकिन उसे ये धंधा रास नहीं आता है. इस युवक का सपना सिर्फ पैसे कमाना होता है. इसके बाद ये युवक अवैध तेल के धंधे में उतर जाता है. तमाम तरह के उल्‍टे सीधे कामों के बीच इस पर कई मामले दर्ज होते हैं. इसी बीच धीरे-धीरे रईस होता तुलसी सिंह राजपूत तेल के अवैध धंधे के अलावा रियल एस्‍टेट के धंधे में उतरता है. सारा ब्‍लैक मनी ह्वाइट होने लगता है. इस बीच तुलसी का संपर्क कई सौ करोड़ रूपये का स्‍टॉम्‍प घोटाला करने वाले अब्‍दुल करीम

पुलिस घेरे में तुलसी सिंह राजपूत तेलगी के साथ होता है. उससे नजदीकी बढ़ते-बढ़ते  लक्ष्‍मी भी अचानक बढ़ने लगती हैं. इसके साथ मामले दर्ज होने की संख्‍या भी बढ़ने लगती है.  महाराष्‍ट्र में कई मामलों में आरोपी होने के बावजूद तुलसी का कुछ नहीं होता है, क्‍योंकि राजपूत मुंबई कांग्रेस अध्‍यक्ष और राज्‍य के पूर्व मंत्री कृपा शंकर सिंह का भी खासम खास बन चुका होता है. महाराष्‍ट्र में तुलसी सिंह राजपूत पर कई दर्जन मामले लंबित चल रहे हैं. तुलसी को मकोका में भी बुक किया जा चुका है, परन्‍तु इस मामले में चार्जशीट अभी तक दाखिल नहीं हुआ है. तुलसी के खिलाफ गुजरात-महाराष्‍ट्र के बार्डर पर स्थित धानाऊ डिविजन के तालासरी थाने में 395, 399, 420 समेत कई धाराओं में मुकदमे दर्ज हैं. पुलिस के रिकार्ड के अनुसार तुलसी पर हत्‍या की कोशिश, धोखेबाजी, मिलावटी तेल, जबरन वसूली, दंगा समेत कई धाराओं में नौ संगीन मुकदमें दर्ज हैं. इसके अतिरिक्‍त 32 अन्‍य मामले भी विभिन्‍न थानों में दर्ज हैं. तालासारी पुलिस स्‍टेशन में ही तुलसी पर दंगा और पुलिस सब इंस्‍पेक्‍टर को धमकी देने का मुकदमा भी दर्ज है. यह मुकदमा उस समय दर्ज किया गया था जब तुलसी अपने भाई राजेश श्रवण और ड्राइवर राम निवास यादव के साथ एक आदिवासी राहू कात्‍या कारपाडे की डेड बॉडी की फोटो जबरिया ले रहे थे.

धनपति बन चुके तुलसी को अब ताकत की जरूरत महसूस होने लगती है. इसके लिए तुलसी महाराष्‍ट्र में समाजवादी पार्टी से जुड़ जाते हैं, लेकिन वहां चुनावी दाल गलती नहीं दिखती है. तब तुलसी को अपने गृह जनपद की याद आती है. चंदौली को अपना कर्मभूमि बनाने के लिए जोर लगाने लगते हैं. कैली-कुरहना गांव में कई हेक्‍टेयर भूमि खरीदकर उस पर राजपूत एग्रो समूह बनाते हैं. और ऐलान होता है कि अब जिले के युवाओं को यहां रोजगार दिया जाएगा. कई लोगों ने उनके मार्कशीट जमा कराए जाते हैं. युवकों को पेंशन बांटने के वादे किए जाते हैं. अन्‍य तमाम तरह के वादे भी होते हैं. एक बड़ा धनपति देखकर जिले के तमाम लोग उनके इर्द-गिर्द सटने लगते हैं. जब पजेरो जैसी महंगी गाडि़यों का काफिला गुजरता तो लोग कौतूहल से देखते. अखबार वालों को भी अपने लिए एक नया शिकार दिखाई देने लगा. तमाम तरीकों से तुलसी को अपने जाल में फांसने के लिए चारा फेंका जाने लगा. सभी बड़े अखबार के पत्रकार तुलसी से नजदीकी बढ़ाने के लिए तमाम संपर्कों का सहारा लेने लगे.

तुलसी ने भी फंसने से पहले पत्रकारों की खूब आवाभगत की. उन्‍हें समाजवादी पार्टी से टिकट मिलने की पूरी उम्‍मीद थी. पैसे की पॉवर के बावजूद पार्टी ने तुलसी को टिकट नहीं दिया. जिसके बाद
तुलसी
पुलिस के बातचीत करते आसमानी शर्ट में तुलसी सिंह राजपूत
तुलसी सपा का दामन छोड़ दिया. कई पार्टियों में उन्‍होंने कोशिश की, लेकिन दाल कहीं नहीं गली. इस दौरान उन्‍होंने तमाम अखबारों को विज्ञापनों से उपकृत किया. पत्रकारों का व्‍यक्तिगत सेवा भी हुआ. तुलसी के पक्ष में काफी खबरें छपी पर किसी बड़ी पार्टी ने इनके अतीत को देखते हुए टिकट नहीं दिया. मजबूरी में तुलसी ने भारतीय समाज पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टी का दामन थाम लिया. पार्टी ने इन्‍हें लोकसभा चुनावों के लिए अपना उम्‍मीदवार भी घोषित कर दिया. इसके बाद ही शुरू हो गया इनका और अखबारों का प्रेम. अखबारों और पत्रकारों ने इनसे पैसे कूटे और इन्‍होंने अखबारों से समाचार लूटे. हिंदुस्‍तान और जागरण इनके दास बन गए. दोनों अखबारों को 20 से 25 लाख रूपये तक के विज्ञापन मिले. जिले और बनारस के पत्रकार उपकृत हुए अलग से. कहते हैं ना कि नमक खाने के बाद आंख शर्माती है, तब से ही जिले के कथित बड़े पत्रकार आज तक तुलसी से शर्माते हैं और मजबूरी में इनके खिलाफ खबरें देने के पहले इनका पूरा ख्‍याल रखा जाता है.

लोकसभा के चुनावों में ही दैनिक जागरण और हिंदुस्‍तान ने अपनी तरफ से इन्‍हें लोकसभा में भेज दिया था. वो तो जनता ने धोखा दे दिया नहीं तो तुलसी सांसद बन गए होते. बनारस से लेकर चंदौली तक बड़े पत्रकार तुलसी से सटने के लिए हर जतन करते थे. जागरण में गांधी मठ का एकछत्र राज है, लिहाजा तुलसी की सीधी डिलिंग वहीं से होती थी. खबरें किस तरह से मेनूपुलेट करनी है इसका निर्धारण भी संपादकीय के एकमात्र केबिन से होता था. जागरण ने भी तुलसी को आंगन-आंगन का प्‍यारा बना दिया था. यहां पर विज्ञापन के अलावा भी प्‍यार-मुहब्‍बत देखने को मिला. अब भी तुलसी जागरण के छोटे यानी क्षेत्रीय प्रतिनिधियों को कुछ नहीं समझते हैं. उन्‍हें इन प्रतिनिधियों की औकात का पता है कि इनके एकबार छींकने से इन क्षेत्रीय प्रतिनिधियों की बिना सेलरी वाली नौकरी चली जाएगी. लिहाजा क्षेत्रीय प्रतिनिधि भी इनकी सेवा का पूरा ख्‍याल रखते हैं. और कोशिश करते हैं कि बाकी खबरें भले ही छूट जाएं पर तुलसी की खबरें किसी कीमत पर नहीं छूटनी चाहिए.

हिंदुस्‍तान तो जागरण से भी एक कदम आगे था. अच्‍छी खासी डिलिंग का असर साफ दिखता था. इस अखबार के जिला सर्वेसर्वा खुद तुलसी की सभाओं को कवरेज करने जाते थे. इन महोदय के लिए बाकायदा गाड़ी की अलग से व्‍यवस्‍था की गई थी. जमकर सेवा होता था इनका. यह अखबार भी जागरण की तरह बस 'तू तुलसी मेरे आंगन का' जैसे कहे अनकहे शब्‍दों से रंगा रहता था. शैलेंद्र सिंह जैसे प्रत्‍याशी की खबरें दोनों अखबारों में इधर उधर कहीं रहती थीं या दिखती ही नहीं थीं, पर तुलसी की खबर न हो यह संभव नहीं था. चुनाव के एक या दो दिन पहले हिंदुस्‍तान ने ऐसा करामात दिखाया कि आम पाठक थू-थू करने लगा था. तुलसी का ऐसा पेड न्‍यूज छपा था कि जागरूक पाठक पूरी तरह इस अखबार को कोसते दिखे  थे. काफी छीछालेदर के चलते अखबार को अगले दिन सफाई छापनी पड़ी कि यह विज्ञापन था. दोनों अखबारों में तुलसी चालीसा इनकी पुरानी कॉपियों में आसानी से देखा जा सकता है.

लोकसभा चुनाव के दौरान तो अमर उजाला से कोई डील नहीं हो सकी थी, परन्‍तु अब ये अमर उजाला के खास बन गए हैं. अखबार के ताकतवर सज्‍जन के छोटे भाई बन चुके हैं. तभी इस अखबार ने भी भाई जगताप पर हमला की खबर को इतना प्‍यार से लिखा था कि लग रहा था, सारी गलती मार खाने वाले भाई जगताप की ही है. सहारा से भी इनकी अच्‍छी खासी डील हो गई है. खबरें वही जाती हैं, जो इनको बुरी न लगे. आज की स्थिति भी कमोवेश ऐसी ही है. यानी जिले के सभी बड़े अखबार इनके गुलाम बन चुके हैं. बड़े अखबारों के किसी बड़े पत्रकार में इतनी ताकत नहीं है कि वो इनकी सच्‍चाई लिख सके. या तो पैसे से मैनेज है या फिर विज्ञापन न मिलने का डर है. यानी तुलसी मामले में सारे बड़े अखबार अपने गांडीव टांग चुके हैं.

इस मामले में भी पत्रकारों ने तुलसी का परोक्ष रूप से पूरा साथ दिया. पुलिस को भी पैसे और ताकत के बल पर मैनेज किया गया. नहीं तो आम आदमी को क्रब के अंदर से ढूंढ निकालने वाली पुलिस को लक्‍जरी गाडि़यों से चलने वाले तुलसी की भनक नहीं लगती. खबर है कि तुलसी को जमानत कराने का पूरा मौका दिया गया. इलाहाबाद हाई कोर्ट से भी जमानत लेने का पूरा प्रयास हुआ, लेकिन बात नहीं बनने पर मजबूरी में तुलसी को आत्‍म समर्पण करना पड़ा. परन्‍तु उनके शुभचिंतकों ने ऐसी राह तैयार कराई की ये आसानी के साथ कोर्ट में सरेण्‍डर कर सकें. और इसमें इनके पत्रकार भाइयों ने पूरा साथ दिया.

कोई टिप्पणी नहीं: