मंगलवार, 1 सितंबर 2009

अध्ययन और सर्वेक्षण

संसद में भाईचारा का माहौल देखना रास नहीं आ रहा है। अब किसी बात पर शोर शराबा, नोकझोंक ना हो तो, संसद भी संसद जैसा नहीं लगता है। ऐसा लग रहा है संसद को किसी की नज़र लग गई है। संसद में पहले तभी भाईचारा दिखता था जब सांसद लोगों के वेतन व भत्ते बढ़ाये जाते थे, पर अब तो हर मुद्दे पर सांसदों का एक दूसरे से अपनापन देखना, आम लोगों को ही नहीं बल्कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी अच्छा नहीं लग रहा है। संसद का माहौल इंडिया टीवी से दूरदर्शन जैसा नीरस हो गया है। पहले हम भारतवासी भी खुश होते थे, जिसे चुनकर भेजा है, वह संसद में अपना बवाल वाला काम मन लगाकर कर रहा है।

अब तो ऐसा लग रहा है जैसे संसद में हर मौका एकता और भाईचारे का है। देश में महंगाई बढ़ी, सभी पार्टी के सांसदों ने महंगाई पर भी एकता दिखाया। क्योंकि महंगाई में सरकार की तो कोई भूमिका भी नहीं है और विपक्ष को इससे कोई मतलब नहीं है। जनता ने जब से विपक्षी दल के साथ धोखा किया है, तब से बेचारे आपस में ही लड़ाई झगड़ा कर रहे हैं। ये जनता जो ना करा दे। जनता को संसद में ऐसा नजारा देखने को नहीं मिल पा रहा है, जिसके वो आदी हो गये थे। दूसरी तरफ जनता बेकार में हल्ला कर रही है कि दाल, चावल, सब्जी के दाम बढ़ गये हैं। पक्ष-विपक्ष के सेहत पर जब महंगाई से कोई असर नहीं पड़ा तो निश्चित ही महंगाई नहीं बढ़ी होगी। दाल, चावल, सब्जी के कीमत कैसे बढ़ सकता है जब मुद्रास्फीति कम है, अर्थशास्त्र भी यही कहता है। मुद्रास्फीति कम है तो महंगाई कम है। अब महंगाई अर्थशास्त्र से तो बड़ी नहीं है। जिसे अपने पीएम समझ ना सकें। आखिर अपने पीएम भी तो अर्थशास्त्री हैं, मुद्रास्फीति देखकर ही महंगाई को मानेंगे। वैसे भी अपने देश में हवा हवाई परेशानियां ज्यादा हैं। आम लोग बिना मतलब के शोर शराबा करते हैं कि ये परेशानी है या वो परेशानी है। इसलिए सांसद लोग को आम लोग की ऐसी तमाम परेशानियों के अध्ययन के लिये यहां वहां, जहां तहां भेजा जाना चाहिए। ताकि देश की समस्याएं हल हो सकें।

सूखा पर अध्ययन के लिये पन्द्रह सांसदों की समिति को स्वीटजरलैंड, बाढ़ पर चर्चा के लिये एक संसदीय समिति को अमेरिका, आतंकवाद पर अध्ययन के लिये एक समीति इंग्लैंड, महंगाई के संदर्भ में अध्ययन के लिये एक समिति जर्मनी, गरीबी उन्मूलन के अध्ययन के लिये एक समिति साउथ अफ्रीका भेजी जा सकती है। लोकतंत्र को मजबूत करने के लिये एक समिति सिंगापुर, शिक्षा पर अध्ययन के लिये एक समिति न्यूजीलैंड, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूत करने के लिये एक समिति ब्राजील, रेलवे को मजबूत करने के लिये एक समिति आस्ट्रेलिया, अपराध और अपराधी पर रोक के लिये एक समिति पाकिस्तान, नदियों में पानी के आने जाने पर अध्ययन के ‌लिये एक समिति सउदी अरब भेजना चाहिए। हां एक बात और, इन सारी समितियों के अध्ययन के लिये एक समिति कनाड़ा भेजी जा सकती है। सारी समितियों का खर्चा पानी, चिलम-हुक्का सब सरकार द्वारा वहन किया जाना चाहिए।

अगर इन समितियों के बाद कुछ सांसद बाहर जाने से बच जाते हैं तो उन्हें वि‌भिन्न समस्याओं का हवाई सर्वेक्षण करवाया जाना चाहिए। हवाई सर्वेक्षण करने वाले सांसदों को परिवार के दो सदस्यों को फ्री हवाई सर्वेक्षण करने का ऑफर दिया जा सकता है। सूखे का हवाई सर्वेक्षण, बाढ़ का हवाई सर्वेक्षण, महंगाई का हवाई सर्वेक्षण, गरीबी का हवाई सर्वेक्षण, बेरोजगारी का हवाई सर्वेक्षण, मुद्रास्फीति का हवाई सर्वेक्षण, अपराध का हवाई सर्वेक्षण, लोकतंत्र का हवाई सर्वेक्षण करवाया जा सकता है। अगर इसके बाद भी कुछ सांसद बच जायें तो उनके लिये जल सर्वेक्षण का ऑफर दिया जा सकता है। ऐसे सांसदों के लिये गोवा, पांडिचेरी के जल सर्वेक्षण का ऑफर एक बेहतर विकल्प है। ऐसे सांसदों को परिवार के पांच सदस्यों को मुफ्त जल सर्वेक्षण का ऑफर दिया जा सकता है। जल सर्वेक्षण पर नये सांसदों को भेजा जाना चाहिए, सा‌थ सर्वेक्षण के बाद इन सांसदों को वापसी में भारी मात्रा में नकदी भी दी जानी चाहिए ताकि ये हवाई सर्वेक्षण और विदेश गई समितियों के बराबर सरकारी धन खर्च कर सकें। ये कुछ ऐसे कारगर उपाय हैं, जिससे देश की सारी समस्याएं शीघ्र हल की जा सकती हैं। जनता भी खुश होगी कि सांसद कोई काम करें ना करें उनके हित के लिये यहां वहां दौड़ धूप तो कर रहे हैं।

1 टिप्पणी:

Dr. M. P. Mishra ने कहा…

Thank you for starting this blog.Thank you for what? Well, thank you for exposing the original lives, thoughts, feelings, pains of those trembling on pagdandi. Yes, this is the aspect of humanity which has never been seen by empowered people with a little sympathy. Of course, leaders talk about wretched, down troden and particular types of people. But they too, I wonder could not see the people on pagdandi.Pagdandies are being converted into pitch roads, and some other types of people have started walking on them.The users of pagadandi search new pathways for them.These pathways can never be indicated on any map.
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Thank you again for touching the nerves of millions, though they might not have been able, rather fortunate to visit this blog.