वैसे तो छोटे और ग़रीब लोगों को वसीयत लिखने की जरूरत नहीं होती और ना ही इस तरह का कोई अधिकार ही उन्हें प्राप्त होता है। वैसे भी वसीयत लिखना गरीब लोगों का काम नहीं है, क्योंकि उनके पास ऐसा कुछ नहीं होता जिसके लिये वसीयत लिखनी पड़े। वसीयत लिखने के पहले ही सारा हिसाब किताब क्लीयर हो जाता है। बड़ा भाई सरकारी नाले पर कब्जा कर लिया तो छोटा वाला भाई झोपड़पट्टी में। मतलब लड़ाई झगड़ा होने के लिये पर्याप्त मसाला मौजूद रहता है, इसलिये वसीयत लिखकर लड़ाने के लिये कोई खास जगह नहीं बचती। देश में जैसे आम लोग की जिंदगी गुजर जाती है, उस स्थिति में मां-बाप की भी कोई ऐसी इच्छा शेष नहीं बचती कि वो वसीयत लिखे। किन्तु पिछले दिनों वसीयत की महिमा जानने के बाद अब मैं वसीयत लिखने की सोच रहा हूं। बिना वसीयत लिखे मौत आ गई तो फिर मैं नरक में भी मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहूंगा। यमराज भी पूछेगें कि तूझे वसीयत ना लिखने के जुर्म में कौन सी खौफ़नाक सज़ा दी जाय। वसीयत नहीं लिखा तो अब तेरी मूर्ति यहां वहां कैसे लगेगी। हो सकता है मेरी इस लापरवाही पर वो मुझे नरक से भी निकाल दें। इसलिये सारी भावी परेशानियों को देखते हुए मैंने वसीयत लिखने की ठानी है।
वैसे मैं कोई बड़ा आदमी तो नहीं हूं। कोई नेता नहीं हूं, ठेकेदार तो बिल्कुल नहीं हूं, मैं तो केवल एक आम टूच्चा हूं, तो मेरी वसीयत का खर्च उठाने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी ही पड़ेगी। शुरू होती है मेरी वसीयत यानि आखिरी इच्छा, लोग वसीयत जीते जी सार्वजनिक नहीं करते परन्तु मैं गरीब वसीयतबाज हूं तो मुझे इसे सार्वजनिक करना ही पड़ेगा। मैं चिरकुट कुमार, मेरी इच्छा है कि मेरे मरने से पहले मेरी मूर्ति मेरी धर्म पत्नी के साथ पूरे देश के गली, कूचों, पार्कों और चौराहों के साथ अगर कूड़े के ढेर के आसपास जगह मिले तो वहां भी लगाया जाय। मेरे घरेलू कुत्ता शावक कुमार की मूर्तियां भी यहां वहां के साथ विभिन्न पार्कों में लगवाया जाय। सभी मूर्तियां उपरोक्त जगहों के बाद अवैध रूप से कब्ज़ा किये हुए जमीन पर, या आम लोगों को ठगने वाले बिल्डरों की जमीन पर लगाया जाय। जिससे हमलोगों की देश विदेश में पहचान बन सके। हम अपने जीवन में बेहतरी के लिये बहुत संघर्ष किया है, हम अपने परिवार और पट्टीदारों को फायदा दिलाने के लिये लिये बहुत मगजमारी की है । पप्पू का लोटा चुराया है, सियाराम का गमला मेरी पत्नी ने चोरी किया, शावक कुमार पड़ोसी की कुत्तिया के साथ नयन मटक्का कर चुका है। हालांकि मैं कभी नेता नहीं बन पाया, बहुत इच्छा थी परन्तु हमारे दादा जी कभी विधायक या सांसद नहीं बन पाये, पिता जी कभी चेयरमैन या मंत्री नहीं रहे, लिहाजा मेरा पुस्तैनी धंधा न होने से मैं राजनीति कभी नहीं कर पाया। चमचागिरी गुण में थोड़ा कम रह गया इसलिए मेरा चावल नहीं गला (क्योंकि दाल इतनी महंगी हो गई है कि उसे खरीदना ही मुश्किल है, गलेगी कहां से)। किसी भी पार्टी ने मुझे चुनाव लड़ने के लिये आमंत्रित नहीं किया क्योंकि मैं कट्टा और बंदूक चला पाने में असमर्थ था। मेरी सरकारी कार्यालयों में घुसने की कभी हैसियत ही नहीं रही तो घोटाले कहां से करता ? लिहाजा मैं इस समाज में कोई बढ़िया काम करने में असमर्थ रहा। इसलिये किसी राजनीतिक पार्टी ने मुझमें दिलचस्पी नहीं दिखाई।
अपनी इसी असमर्थता को दूर करने के लिये ही मैंने वसीयत लिखने की ठानी है। मेरी सपरिवार मूर्ति लगाने की जिम्मेदारी मैं केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों को देना चाहता हूं। जो सरकारी पैसे यानि आम लोगों के पैसे से हम तीनों लोगो की यहां-तहां मूर्तियां लगवायें। जो राज्य मूर्ति लगवाने में आनाकानी करे, केन्द्र सरकार उसे धारा 356 के तहत बर्खास्त करे। मेरी और मेरे छोटे परिवार की मूर्तियां लगवाने के लिये बकायदा टेंडर निकाला जाय ताकि मूर्तियों के साथ कुछ लोगों को रोजगार तो कुछ लोग को खाने कमाने का मौका मिले। ताकि वे मेरा गुणगान कर सकें और नरक में मेरे लिये कुछ जगह आरक्षित हो जाय। मेरी इच्छा है कि अगर केन्द्र सरकार के पास मेरी मूर्तियां लगाने में धन की कमी आड़े आये तो सरकार स्विस बैंकों से लोन ले, कर्जा ले और अगर बैंक उधार देने में आनाकानी करें तो किसी भारतीय नेता से ही स्विस बैंक के मार्फत लोन लिया जाय। इसके दो फायदे होंगे नेता का धन सफेद हो जायेगा और अपने ही देश में मूर्ति लगाने में खर्च होगा। मेरी और परिवार की मूर्ति लगाने में जितने अरब का भी खर्च हो, उसे केन्द्र और राज्य सरकार मिल कर वहन करें।
मेरी इच्छा है कि इस वसीयत को मेरे जीते जी खोल कर इस पर काम शुरू कर दिया जाये ताकि मैं भी कुछ पैसा बना सकूं। पता नहीं फिर मेरे हाथ इस तरह का मौका लगे या ना लगे। मेरी इच्छा है कि मेरे पुत्र को विभिन्न राजनीतिक दल विधायक और सांसद बनने का मौका प्रदान करें। जिस पार्टी की केन्द्र में सरकार हो मेरे पुत्र को मंत्री बनाने के लिये आमंत्रित करे ताकि वो सरकारी धन का उपयोग अपना सरकारी घर और सरकारी बैंक बैलेंस बनाने में कर सके। अगर मेरा पुत्र एक बार चेयरमैन, विधायक, सांसद या मंत्री बन गया तो फिर कई पुरखों तक हम लोगों को मूर्तियां बनवाने और लगवाने के लिये परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी। जहां कब्जा हो गया वहीं सरकारी धन से वो मूर्तियां लगवा देगा। आम जनता भी हमारी मूर्तियों को देखकर प्रसन्न होना सीख लेगी। उसके सामने मूर्तियां लगवाने में रोजगार का अवसर भी प्राप्त होगा। यानि जब हमारे वसीयत पर केन्द्र सरकार काम शुरू करायेगी तो हर तरफ रोजगार ही रोजगार होगा, लोगों पर माया यानि धन की बरसात होगी, लोग खुश तथा प्रसन्न होंगे तो उनके स्वास्थ्य भी सही होंगे। स्वाइन फ्लू की चिंता नहीं सतायेगी वो मलेरिया से ही मर जायेंगे। दूसरी तरफ हमारा आने वाला खानदान पीढ़ी दर पीढ़ी मूर्तियों की लिये नहीं तरसेगा, जैसा कि हमारे दादा जी तरस रहे हैं। सुना है! वसीयत को बदला नहीं जा सकता इस पर अमल करना जरूरी होता है, इसलिये अब मुझे तसल्ली है कि मूर्तियों का सफर जल्द शुरू हो जायेगा और हर तरफ खुशहाली आयेगी।
गुरुवार, 10 सितंबर 2009
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8 टिप्पणियां:
swagat hai.......aapko jaankar shayad achchha lage ki pagdandi ka ek raahi aap jaise mitra ki raah mein tha........
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स्वागत है आपका, निरंतर सक्रिय लेखन से हिन्दी ब्लॉग्गिंग को समृद्ध करें. कृपया लेख के बीच में पैरा दे तो पठनीयता बनेगी
धन्यवाद!
- सुलभ जायसवाल सतरंगी (यादों का इंद्रजाल)
बहुत अछ्छा ।
बहुत सुन्दर...लिखते रहें...शुभकामनाएं...
पढ़कर मज़ा आया....
शुभकामनाए!!!!
your thought are best
ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं. जारी रहें.
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Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
आपका स्वागत है
आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा
सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं
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