हमारे देश के लोग भोले भाले तो हैं पर इतने नासमझ हैं नहीं पता था। देश के किसी भी हिस्से में कोई भी घटना घटी नहीं कि पुलिस पर दोषारोपण करना शुरू कर देते हैं। समझ में नहीं आता आखिर पुलिस कहां कहां मौजूद रहेगी। अगर सड़क कोई घटना होती है, डकैती होती है, चोरी होती है, अपहरण होता है, लूट होती है, बलात्कार होता है या कोई आतंकी घटना होती है, लोग पुलिस को ही कोसने लगते हैं। पुलिस अगर सड़क पर मौजूद रहती है तो घर में चोरी, लूट हो जाती है। अगर पुलिस घर में मौजूद रहे और सड़क में हादसा हो जाये तो लोग कहते हैं पुलिस हमेशा घर पर ही रहती है। अब आप ही बतायें पुलिस कहां मौजूद रहे सड़क पर या घर में। जब आप को यह सुन के ही चक्कर आने लगा तो बताईये पुलिस का हाल क्या होता होगा।
आरोप लगाने वालों का क्या है, वे तो ये भी कहते हैं कि पुलिस तनख्वाह तो लेती है पर काम नहीं करती। अपराध बढ़ता है तो पुलिस को कोसते हैं,पर यह नहीं सोचते कि जब अपराध बढ़ेगा तब ही तो पुलिस काम करेगी, बिना अपराध बढ़े पुलिस कौन सा काम करेगी। इसलिये अपराध बढ़ा है तो समझिये पुलिस काम कर रही है। हमें तो अपराध बढ़ने की स्थिति में खुश होना चाहिए न कि पुलिस को कोसना चाहिए। वैसे भी खाली दिमाग शैतान का घर होता है। पुलिस भी खाली रहेगी तो यहां छापामारी करेगी वहां छापामारी करेगी। अब पुलिस किसी सेठ के गोदाम पर छापामारी करने, किसी धन्ना के बैंक लॉकर को तलाशने या चोरी छिपे काम करने वालों को परेशान करने तो नहीं बैठी नहीं है! भई पुलिस का काम तो अपराध रोकना है,इसलिये अगर अपराध बढ़ेंगे नहीं तो पुलिस रोकेगी किसको ?
कुछ लोग पुलिस घिनौने आरोप लगाने से भी नहीं चूकते हैं और सबसे दुखद बात यह कि आरोप लगाते समय पुलिस के स्टैण्डर्ड का भी ख्याल भी नहीं रखा जाता है। लोग कहते हैं कि पुलिस अपने संरक्षण में हेरोईन, शराब, गांजा, अफीम, चरस, डीजल, पेट्रोल बिकवा रही है। भई, अब इन नासपीटों को कौन समझाये कि पुलिस यह सब नहीं बिकवायेगी तो क्या मूंगफली और चना बिकवायेगी। आखिर स्टैण्डर्ड भी तो कोई चीज होती है। कुछ तो ये भी कहते हैं पुलिस नकली सामानों की बिक्री करवा रही है। भई, तो क्या हमारे देश की पुलिस इतनी अमीर हो गई है कि वो फैक्ट्री खुलवाकर असली सामान बनवा के बिकवायेगी। आखिर पुलिस ये सारे काम तो बिना किसी तनख्वाह के करती है, सरकार तो उसे सिर्फ अपराध रोकने के पैसे देती है, इस तरह के काम करने के तनख्वाह पुलिस कहां मांगती है। वह तो उपर के सारे काम समाजसेवा समझ कर करती है। अब ऐसे में कोई आरोप लगाये तो बुरा तो लगेगा ही!
वैसे भी जो काम सरकार को करनी चाहिए वो काम हमारे देश की पुलिस कर रही है। पुलिस सैकड़ों बेरोजगारों को अपने दम पर रोजगार उपलब्ध करवा रही है। देश के विभिन्न गली, चौराहों, नुक्कड़ों पर ट्रक, बस, ठेला, खोमचा, मिट्टी के तेल को डीजल बनाने वालों, पानी को शराब बनाने वालों, सरकारी सामानों को बाजार में बेचने वालों से राजस्व अर्जन के कार्य में लगाकर, पुलिस सैकड़ों बेरोजगार युवकों को रोजगार उपलब्ध कराया है। इसके लिये वह सरकार से कोई मदद भी नहीं लेती है। किसी चौराहे या पुलिस पिकेट के पास इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकते हैं। अब आप ही बताईये कि पुलिस अपने बल पर वसूली के लिये लगाये गये युवकों के परिवार का पेट पाल रही है, यह कर पाना और किसी के बस की बात है क्या ? इन युवकों को उनका पारिश्रमिक पुलिसकर्मी ईमानदारी से दे देते हैं, यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य है। अब बताइये युवकों को रोजगार देने वाली पुलिस गलत है?
अपने देश को लेकर एक कहावत बहुत प्रचलित है कि यहां अनेकता में एकता है। तो यह कहावत ऐसे ही नहीं बनी है, इस कहावत में पुलिस वालों का बहुत बड़ा योगदान है। आप पूरब से पश्चिम जाइये, उत्तर से दक्षिण जाइये, आपको राज्यों की भाषा में अंतर मिलेगा, लोगों के रहन सहन में अंतर मिलेगा, बात व्यवहार में अंतर मिलेगा, समय काल में अंतर मिलेगा, परन्तु इसके बावजूद भी आपको किसी राज्य में पुलिस के चाल या चरित्र में कोई अंतर नहीं मिलेगा। सभी राज्यों में पुलिस एक से निर्विकार भाव से अपने कार्य में मशगूल रहती है। उन्हें तो बस अपने कर्म पर पूरा विश्वास रहता है। उदाहरण स्वरूप ध्यान दें- सभी राज्य के पुलिस के पास उनका मुखबिर होता है, कारखास होता है (वैसे यह कोई सरकारी पद नहीं है, किन्तु आपको देश के सभी थानों में यह गैरसरकारी और राजस्व अर्जन के इज्जतदार पद पर कोई न कोई मिल ही जायेगा)। इसीलिये कहा जाता है कि अपने देश में सारी अनेकताओं के बाद भी एकता है तो इसके पीछे अपने देश की पुलिस बहुत बड़ी कारण हैं। अगर आप कई बातों पर गहराई से अध्ययन करें तो सभी प्रदेश के पुलिस में समानता होती है। जैसे मुठभेड़ की कहानी- पुलिस को मुखबिर से सूचना मिलती है, पुलिस अपने पेटेंट अड्डे (यह देश में हर पुलिस थाने का अपना खरीदा गया जमीन होता है, आप पायेंगे कि अधिकांश मुठभेड़ इसी जगह पर होते हैं) पर घेरेबंदी करती है, दो बदमाश मोटरसाइकिल से आते हैं, पुलिस हाथ देती है, वो बाइक की रफ्तार तेज कर लेते हैं, पीछे बैठा बदमाश गोली चलाता है, आत्मरक्षा में पुलिस भी गोली चलाती है, पीछे बैठा बदमाश गिर जाता है, दूसरा बदमाश अंधेरे का लाभ उठा कर भाग जाता है। अमूमन इस तरह की कहानी देश के हर मुठभेड़ में होती है, दिन संख्या या वाहन का अतंर हो सकता है। इससे प्रतीत होता है कि देश में अनेकता में एकता वाला मुहावरा पुलिस की ही देन है।
पुलिस तो जनता की सेवा के लिये है। पुलिस का काम है समाज से अपराध को कम करना। पुलिस जब अपराध को कम करती है तो कुछ लोगों की शिकायत होती है कि पुलिस मामलों को दर्ज नहीं करती है। पुलिस अगर लिखापढ़ी और कागजों के माध्यम से अपराध कम करती है तो किसी को शिकायत नहीं होनी चाहिए। होना भी यही चाहिए की आंकड़ों में अपराध कम हो, क्योंकि आंकड़ों में अपराध कम होगा तो जुर्म कम होंगे। अगर आप लूट लिये जाते हैं, आपके दुकान का शटर तोड़ दिया जाता है, घर में चोरी कर ली जाती है, रेप होता है तो इसमें पुलिस का दोष कहां है। दोष तो आपका है जो पैसा लेकर यहां वहां आते जाते हैं, दुकान में ताला लगाकर निश्चिंत हो जाते हैं, घर पर आराम से सोते हैं। पुलिस के पास अपने काम भी तो हैं तो वो अन्य कामों अपना कितना दिमाग खपायेगी। पुलिस ठीक करती है जो आपका मामला दर्ज नहीं करती है ? जब सारे अपराध पुलिस ही रोकेगी तो हम और आप क्या करेंगे?
आरोप लगाने वालों का क्या है, वे तो ये भी कहते हैं कि पुलिस तनख्वाह तो लेती है पर काम नहीं करती। अपराध बढ़ता है तो पुलिस को कोसते हैं,पर यह नहीं सोचते कि जब अपराध बढ़ेगा तब ही तो पुलिस काम करेगी, बिना अपराध बढ़े पुलिस कौन सा काम करेगी। इसलिये अपराध बढ़ा है तो समझिये पुलिस काम कर रही है। हमें तो अपराध बढ़ने की स्थिति में खुश होना चाहिए न कि पुलिस को कोसना चाहिए। वैसे भी खाली दिमाग शैतान का घर होता है। पुलिस भी खाली रहेगी तो यहां छापामारी करेगी वहां छापामारी करेगी। अब पुलिस किसी सेठ के गोदाम पर छापामारी करने, किसी धन्ना के बैंक लॉकर को तलाशने या चोरी छिपे काम करने वालों को परेशान करने तो नहीं बैठी नहीं है! भई पुलिस का काम तो अपराध रोकना है,इसलिये अगर अपराध बढ़ेंगे नहीं तो पुलिस रोकेगी किसको ?
कुछ लोग पुलिस घिनौने आरोप लगाने से भी नहीं चूकते हैं और सबसे दुखद बात यह कि आरोप लगाते समय पुलिस के स्टैण्डर्ड का भी ख्याल भी नहीं रखा जाता है। लोग कहते हैं कि पुलिस अपने संरक्षण में हेरोईन, शराब, गांजा, अफीम, चरस, डीजल, पेट्रोल बिकवा रही है। भई, अब इन नासपीटों को कौन समझाये कि पुलिस यह सब नहीं बिकवायेगी तो क्या मूंगफली और चना बिकवायेगी। आखिर स्टैण्डर्ड भी तो कोई चीज होती है। कुछ तो ये भी कहते हैं पुलिस नकली सामानों की बिक्री करवा रही है। भई, तो क्या हमारे देश की पुलिस इतनी अमीर हो गई है कि वो फैक्ट्री खुलवाकर असली सामान बनवा के बिकवायेगी। आखिर पुलिस ये सारे काम तो बिना किसी तनख्वाह के करती है, सरकार तो उसे सिर्फ अपराध रोकने के पैसे देती है, इस तरह के काम करने के तनख्वाह पुलिस कहां मांगती है। वह तो उपर के सारे काम समाजसेवा समझ कर करती है। अब ऐसे में कोई आरोप लगाये तो बुरा तो लगेगा ही!
वैसे भी जो काम सरकार को करनी चाहिए वो काम हमारे देश की पुलिस कर रही है। पुलिस सैकड़ों बेरोजगारों को अपने दम पर रोजगार उपलब्ध करवा रही है। देश के विभिन्न गली, चौराहों, नुक्कड़ों पर ट्रक, बस, ठेला, खोमचा, मिट्टी के तेल को डीजल बनाने वालों, पानी को शराब बनाने वालों, सरकारी सामानों को बाजार में बेचने वालों से राजस्व अर्जन के कार्य में लगाकर, पुलिस सैकड़ों बेरोजगार युवकों को रोजगार उपलब्ध कराया है। इसके लिये वह सरकार से कोई मदद भी नहीं लेती है। किसी चौराहे या पुलिस पिकेट के पास इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकते हैं। अब आप ही बताईये कि पुलिस अपने बल पर वसूली के लिये लगाये गये युवकों के परिवार का पेट पाल रही है, यह कर पाना और किसी के बस की बात है क्या ? इन युवकों को उनका पारिश्रमिक पुलिसकर्मी ईमानदारी से दे देते हैं, यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य है। अब बताइये युवकों को रोजगार देने वाली पुलिस गलत है?
अपने देश को लेकर एक कहावत बहुत प्रचलित है कि यहां अनेकता में एकता है। तो यह कहावत ऐसे ही नहीं बनी है, इस कहावत में पुलिस वालों का बहुत बड़ा योगदान है। आप पूरब से पश्चिम जाइये, उत्तर से दक्षिण जाइये, आपको राज्यों की भाषा में अंतर मिलेगा, लोगों के रहन सहन में अंतर मिलेगा, बात व्यवहार में अंतर मिलेगा, समय काल में अंतर मिलेगा, परन्तु इसके बावजूद भी आपको किसी राज्य में पुलिस के चाल या चरित्र में कोई अंतर नहीं मिलेगा। सभी राज्यों में पुलिस एक से निर्विकार भाव से अपने कार्य में मशगूल रहती है। उन्हें तो बस अपने कर्म पर पूरा विश्वास रहता है। उदाहरण स्वरूप ध्यान दें- सभी राज्य के पुलिस के पास उनका मुखबिर होता है, कारखास होता है (वैसे यह कोई सरकारी पद नहीं है, किन्तु आपको देश के सभी थानों में यह गैरसरकारी और राजस्व अर्जन के इज्जतदार पद पर कोई न कोई मिल ही जायेगा)। इसीलिये कहा जाता है कि अपने देश में सारी अनेकताओं के बाद भी एकता है तो इसके पीछे अपने देश की पुलिस बहुत बड़ी कारण हैं। अगर आप कई बातों पर गहराई से अध्ययन करें तो सभी प्रदेश के पुलिस में समानता होती है। जैसे मुठभेड़ की कहानी- पुलिस को मुखबिर से सूचना मिलती है, पुलिस अपने पेटेंट अड्डे (यह देश में हर पुलिस थाने का अपना खरीदा गया जमीन होता है, आप पायेंगे कि अधिकांश मुठभेड़ इसी जगह पर होते हैं) पर घेरेबंदी करती है, दो बदमाश मोटरसाइकिल से आते हैं, पुलिस हाथ देती है, वो बाइक की रफ्तार तेज कर लेते हैं, पीछे बैठा बदमाश गोली चलाता है, आत्मरक्षा में पुलिस भी गोली चलाती है, पीछे बैठा बदमाश गिर जाता है, दूसरा बदमाश अंधेरे का लाभ उठा कर भाग जाता है। अमूमन इस तरह की कहानी देश के हर मुठभेड़ में होती है, दिन संख्या या वाहन का अतंर हो सकता है। इससे प्रतीत होता है कि देश में अनेकता में एकता वाला मुहावरा पुलिस की ही देन है।
पुलिस तो जनता की सेवा के लिये है। पुलिस का काम है समाज से अपराध को कम करना। पुलिस जब अपराध को कम करती है तो कुछ लोगों की शिकायत होती है कि पुलिस मामलों को दर्ज नहीं करती है। पुलिस अगर लिखापढ़ी और कागजों के माध्यम से अपराध कम करती है तो किसी को शिकायत नहीं होनी चाहिए। होना भी यही चाहिए की आंकड़ों में अपराध कम हो, क्योंकि आंकड़ों में अपराध कम होगा तो जुर्म कम होंगे। अगर आप लूट लिये जाते हैं, आपके दुकान का शटर तोड़ दिया जाता है, घर में चोरी कर ली जाती है, रेप होता है तो इसमें पुलिस का दोष कहां है। दोष तो आपका है जो पैसा लेकर यहां वहां आते जाते हैं, दुकान में ताला लगाकर निश्चिंत हो जाते हैं, घर पर आराम से सोते हैं। पुलिस के पास अपने काम भी तो हैं तो वो अन्य कामों अपना कितना दिमाग खपायेगी। पुलिस ठीक करती है जो आपका मामला दर्ज नहीं करती है ? जब सारे अपराध पुलिस ही रोकेगी तो हम और आप क्या करेंगे?
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