बुधवार, 5 जून 2013

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थानेदार ढिल-ढिल पाण्डेय का अपना स्टाइल

पुरानी बात है जिले के एक थाना क्षेत्र में चोरियों की बाढ़ आ गई थी। जिससे आम आदमी की नींद हराम हो गई थी। जिले के आला अफसरों से लेकर पुलिस महकमें के सूबे स्तरीय अधिकारी इसको लेकर काफी चिन्तित थे। यह उस समय की बात है जब सूबे के पुलिस महकमें का मुखिया आई.जी. हुआ करता था। आई.जी. ने पुलिस विभाग के दरोगा से लेकर एस.पी., डी.आई.जी. की मीटिंग बुलाई और उक्त थाना क्षेत्र में होने वाली चोरियों पर अंकुश लगाने पर गहन मंत्रणा किया। मीटिंग में उपस्थित किसी भी अधिकारी की समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सी रणनीति बनाई जाए जिससे होने वाली चोरियों पर नियंत्रण लग सके।
मीटिंग में कई दबंग किस्म में के दरोगा/थानेदार भी उपस्थित थे, लेकिन इन दबंगों ने चुप्पी साध रखी थी। एक दरोगा जी (ढिल-ढिल पाण्डेय) मीटिंग हाल में किनारे बैठे बड़े शान्त भाव से अपने अधिकारियों की मंत्रणा पर गहन विचार कर रहे थे। वह पुराने व मजे हुए सीधे स्वभाव के थे। किसी समकक्षीय ने उन पर कटाक्ष किया और भरे सभाकक्ष में कहा कि यदि उक्त थाने का प्रभार इन्हें दे दिया जाए तो चोरियों पर नियंत्रण लग जाएगा। इतना सुनना था कि आई.जी. महाशय ने उन दरोगा जी (ढिल-ढिल पाण्डेय) से कहा कि यदि उन्हें उस थाने का इंचार्ज बना दिया जाए तो क्या वह वैसा कर पाएँगे जैसा कि अन्य पुलिस अधिकारियों ने सुझाव दिया है।
दरोगा जी अपने उच्चाधिकारी की बातें सुनकर खड़े हो गए और बोले सर जैसा आप चाहें और मैं वादा करता हूँ कि आप को निराश नहीं होना पड़ेगा। आई.जी. महाशय ने कहा- तो जावो आज और अभी से तुमको उक्त थाने का प्रभारी बनाया जाता है, यदि तुम सफल हो गए तो तुम्हारी पदोन्नति के लिए सरकार से सिफारिश भी की जाएगी। आप की महान कृपा होगी श्रीमान् जी- इतना कहकर दरोगा (ढिल-ढिल पाण्डेय) जी चुप हो गए। मीटिंग भी समाप्त हो गई थी। दरोगा जी को थानेदार बनाए जाने का हुक्मनामा भी जारी हो गया। अब वह थानेदार बनकर उक्त थाने पर पहुँचे जहाँ चोरियों की बाढ़ लगी हुई थी।
एक माह उपरान्त- उक्त थाना क्षेत्र में चोरियाँ होना एकदम से बन्द हो गईं। क्षेत्र वासी सुकून से रहने लगे। फिर आई.जी. महाशय का 'मुआयना' हुआ। थाने के रोजनामचे में चोरी की घटनाएँ शून्य पाकर वह बहुत खुश हुए और थानेदार ढिल-ढिल पाण्डेय को शाबासी दिया। जिले के अन्य थानों के निरीक्षण उपरान्त उन्होंने थानेदार पाण्डेय को बुलाकर एकान्त में वार्ता करने की इच्छा व्यक्त किया। अब आई.जी. और थानेदार ढिल-ढिल पाण्डेय एक कमरे में वार्ता कर रहे थे। अधिकारी ने थानेदार के कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि एक महीने में इस थाने की साफ-सफाई और मेस में बनने वाले भोजन से यहाँ के सभी पुलिस कर्मी प्रसन्न एवं स्वस्थ दिख रहे हैं। अच्छा यह बताओ कि तुम रात को गश्त पर नहीं निकलते हो ऐसा क्यो...? फिर भी चोरी रूक गई।
थानेदार ढिलढिल पाण्डेय ने कहा सर माफी चाहूँगा। आप हमारे अफसर हैं। आपने हमारे थाने का निरीक्षण किया और संतुष्ट हैं। यह हम सबके लिए एक बड़ी उपलब्धि है रही बात आप द्वारा पूँछे गए प्रश्नों के उत्तर की...क्या बताऊँ यह हमारा अपना तरीका है कृपा कर प्रश्न वापस ले लें। थानेदार पाण्डेय की बात सुनकर आई.जी. ने कहा मैं तुम्हारा अफसर हूँ मेरे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देना तुम्हारा कर्तव्य बनता है। थानेदार ढिलढिल पाण्डेय को अपने अधिकारी के आदेशों का अनुपालन करने की बात का बोध हो आया उसने कहा सर एक वायदा करिए कि जो कुछ मैं आप को बताऊँगा उसे आप अपने तक ही सीमित रखेंगे। आई.जी. ने 'तथास्तु' कहा और फिर जो कुछ थानेदार ने बताया वह यह कि-
सर मैं जैसे ही उक्त थाने का इंचार्ज बनकर आया थाने की हालत देखा, घास-फूस गन्दगी और मेस में खाना बनाने वालों की कमी, कुल मिलाकर मुझे दुःख हुआ। फिर मैंने रजिस्टर नं. 8 और 10 का विधिवत अवलोकन किया। उसके उपरान्त थाना क्षेत्र के उन सभी शातिर चोरों को थाने में बुलाया। पहले तो सब डर रहे थे, लेकिन जब मैंने उनसे यह कहा कि मैं उनको आकरण परेशान नहीं करूँगा अलबत्ता इसी थाने में पुलिस कर्मियों के समानान्तर काम करने का मौका दूँगा त बवह लोग राजी हुए।
सभी छोटे से लेकर बड़े शातिर चोरों की अब थाने में आमद हो गई। कुछ के जिम्मे साफ-सफाई तो कुछ को खाना बनाने के लिए मेस में ड्यूटी लगा दिया। जो मुखिया था उसी को उन सबों के काम-काज की देख-रेख के लिए मेस मैनेजर और सुपरवाइजर बना दिया। इस तरह साफ-सफाई और मेस का कार्य संचालित होने लगा। मैं दिन में गश्त करने लगा और शाम होते ही अपने मड़हेनुमा आवास में आराम करता। बारी-बारी से शातिर चोर बन्धु मेरी सेवा करते मसलन कोई मालिश करता तो कोई हाथ-पाँव दबाता और कोई हाथ का पंखा चलाता। यही सब मुझे भोजन देते और नहलाते-धुलाते। ऐसा करने से पूरी रात बीत जाती।
कुल मिलाकर मैंने इन चोरों को चोरी का मौका ही नहीं दिया, दिन को अमूमन चोरी होती नहीं, रात को चोर हमारी सेवा में रहते। बस हजूर इसके अलावा मैने कोई जादू नहीं किया। आई.जी. महाशय थानेदार ढिलढिल पाण्डेय की बातें सुनकर अति प्रसन्न हुए और अपने साथ लाए उस पत्र को उनके (थानेदार ढिलढिल पाण्डेय के) हवाले करते हुए कहा कि अब तुम 'कोतवाल' बना दिए गए हो। यह पत्र लो। दोनों पत्र एक प्रोन्नति वाला और दूसरा तबादला वाला। थानेदार पाण्डेय खुश, साथ ही पूरा थाना प्रसन्न हो गया। तो ऐसे थे थानेदार ढिलढिल पाण्डेय।
-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
अकबरपुर-अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
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शहर में लगे 'कर्फ्यू' की वजह...?
शहर में 'कर्फ्यू' लग ही गया। 'कर्फ्यू' की अवधि में शहरवासियों का साँस लेना दूभर हो गया था। बूटो की खट खटाहट से शहर के वासिन्दे सहमे-सहमें मनहूस 'कर्फ्यू' से छुटकारा पाने की सोच रहे थे। शहर के 'कर्फ्यू ग्रस्त' इलाके में हर जाति/धर्म के लोग रहते हैं, सभी के लिए 'कर्फ्यू' कष्टकारी रहा, लेकिन इस कष्ट को धार्मिक कट्टरवादी जानते हुए भी अनजान बने हुए थे। यही नहीं वे कर्फ्यू लगने के कारणों को अपने तरीके से परिभाषित करके धार्मिक उन्माद फैलाते हुए प्रशासन/शासन मुर्दाबाद के नारे भीं बुलन्द करने से बाज नहीं आ रहे थे।
कर्फ्यू क्यो लगा...? पुलिस एवं सुरक्षा बल से जब उग्र भीड़ काबू में नहीं आ सकी तो पुलिस अधिकारी ने प्रशासनिक ब्रम्हास्त्र 'कर्फ्यू' की उद्घोषणा करवा दिया। प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार यदि पुलिस अधिकारी चाहते तो 'कर्फ्यू' का दंश पूरे शहर को न झेलना पड़ता। एक कथित बहुसंख्यक सम्प्रदाय के धार्मिक संगठन के युवा नेता की हत्या हो गई थी, जिसको लेकर उक्त सम्प्रदाय के लोगों में बेहद आक्रोश उत्पन्न हो गया था। हत्या का आरोप अल्प संख्यक सम्प्रदाय के लोगों पर लगाया जाने लगा जिसमें एक माननीय को सूत्रधार बताया गया।
मृतक युवा नेता का शव पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए अपने कब्जे में ले लिया था। अन्त्य परीक्षण उपरान्त नेता का शव उसके शहर स्थित आवास ले जाया गया जहाँ पुलिस बल अपर्याप्त था और फिर दंगा-फसाद शुरू हो गया। कहते हैं कि धार्मिक संगठन के मृत युवा नेता के घर के विपरीत दिशा में ठीक सामने एक इबादतगाह है जो काफी पुरानी हो चुकी है वहाँ जीर्णोद्धार कार्य हो रहा था। शव दिन में उस समय मृतक के घर पुलिस अभिरक्षा में लाया गया जब नमाज का वक्त था। घर के सामने जैसे ही शव को एम्बुलेन्स के स्ट्रेचर से उतारा गया मृतक के घर में रूदन-क्रन्दन शुरू हो गया।
इसी बीच एकत्र भीड़ में से किसी युवक ने एक पत्थर मस्जिद की तरफ जोर से उछाला जो वहाँ जीर्णोद्धार कार्य के लिए लगी बाँस-बल्ली से जोर से टकराकर पुनः सड़क पर गिर पड़ा। फिर क्या था वहाँ एकत्र भीड़ में से आवाज आई कि यह पत्थर मस्जिद से आया है और शुरू हो गया हंगामा, आगजनी और पत्थर बाजी। दोनो सम्प्रदाय के लोगों ने जमकर कोहराम मचाना शुरू कर दिया।
पुलिस बल का नेतृत्व कर रहे एक दोयम दर्जे के पुलिस अधिकारी ने ज्यादा जोखिम न लेते हुए सड़क पर आकर 'कर्फ्यू' लगाए जाने की उद्घोषणा कर दिया। प्रत्यक्ष दर्शियों का कहना है कि कर्फ्यू तब तक नहीं लगता जब तक मजिस्ट्रेट का हस्ताक्षरयुक्त आदेश न हो। होशियार पुलिस अफसर ने बाद में कर्फ्यू की गिरफ्त में आकर खामोश हो गया। इस सम्बन्ध में जब शहर के शान्तप्रिय प्रबुद्ध लोगों से बातचीत की गई तब पता चला कि हंगामा तो बरपा जिसके नियंत्रण के लिए 'कर्फ्यू' ही एक चारा था लेकिन-
एक मुस्लिम शिक्षित नगरवासी के अनुसार यदि पुलिस/प्रशासनिक अधिकारी सचेत होते तो शहर में कर्फ्यू लगता ही नहीं उसके लिए उन्हें मृतक के शव को नमाज के 15-20 मिनट पहले अथवा बाद में लाना चाहिए था। उस पुरानी मस्जिद में कुछ बुजुर्ग नमाज अदा कर रहे थे जिन्हें यह आशंका भी नहीं थी कि वहाँ 'हंगामा' बरपेगा और 'कर्फ्यू' लग जाएगा। दूसरी बात यह कि जिस पत्थर को बहुसंख्यक लोग यह कह रहे हैं कि वह मस्जिद के गुम्बद से फेंका गया था वह झूठ है क्योंकि मस्जिद जैसे पाक स्थान पर 'बलवाई' थे ही नहीं। उसके अन्दर दोपहर (अपरान्ह) की नमाज अदा करने वाले कुल पाँच-दस बुजुर्ग मुसलमान ही थे।
उनका कहना था कि अपना शहर गंगा-जमुनी तहजीब के लिए विख्यात है।यहाँ किसी भी मन्दिर-मस्जिद में उग्रवादी/आतंकवादी छिप ही नहीं सकते क्योंकि शहर में भाईचारा ही ऐसा है कि यहाँ के लोग किसी भी अप्रिय घटना को अंजाम ही नहीं दे सकते। उधर एक हिन्दू शिक्षित नगर वासी जो पेशे से पत्रकार हैं का कहना है कि पत्थर मस्जिद से ही आया और तत्पश्चात् वहाँ एकत्र भीड़ ने जवाब में पत्थर बाजी शुरू कर दिया। कुछेक छोटे आटो वाहनों को आग लगा दिया। स्ट्रेचर और एम्बुलेन्स को क्षति पहुँचाया गया। यही नहीं काफी हंगामा बरपाया गया। पुलिस का दोयम अधिकारी 'कर्फ्यू' का 'ऐलान' न करता तो क्या करता...?
शहर के युवा व्यवसाई और धार्मिक संगठन के पदाधिकारी की हत्या हुए महीनों हो गए। धार्मिक संगठनों ने धरना-प्रदर्शन जैसे सभी आन्दोलन कर डालेेेेेे नतीजा सिफर। माननीय (जनप्रतिनिधि) पर लगाए गए आरोपों की तरफ प्रशासन, पुलिस महकमा और शासन ने देखा तक नहीं। कुछेक युवा पकड़कर जेल भेजे गए। मृतक के हमदर्द, वोट के सौदागरों का आरोप है कि सरकार तुष्टिकरण की नीति अपना रही है इसीलिए हिन्दुओं की हत्या करने-कराने वाले साफ बचते जा रहे हैं।
इस तरह की बातें शुरूआती दौर में खूब हुईं अब समय बीतने के साथ-साथ सब शान्त होने लगा है। एक प्रबुद्धवर्गीय शिक्षित का कहना था कि 'कर्फ्यू' के समय और उसके पूर्व अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के घर जलाए गए। वह लोग निराश्रित हो गए। तमाशबीन बनकर शहरवासी उनकी दुर्दशा देखने वहाँ जाते थे, लेकिन किसी ने भी 'इमदाद' नहीं दिया। उन्होंने आश्चर्य जताया कि जिला प्रशासन ने भी उन पीड़ितों को कोई इमदाद नहीं दिया। 'कर्फ्यू' की अवधि समाप्त होने पर स्थानीय लोग और शहर के धनी वर्गीय लोग उनकी इमदाद के लिए आगे आए। कर्फ्यू समाप्ति को लम्बा समय हो रहा है अब सभी पीड़ित अपने आशियाने फिर से लोगों की मदद से बना रहे हैं, और कर्फ्यू कभी न लगे यही दुआ कर रहे हैं।
-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
अकबरपुर-अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)

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