प्रत्येक बार की तरह इस बार भी मात्र कुछ घंटों
के बाद पुराने कैलेंडर देश की सिस्टम की तरह बेकार हो जाएंगे, पुराने पड़
जाएंगे. गनीमत है कि लोगों के पास अपनी जरूरत के अनुसार नया कैलेंडर बदलने
का अधिकार है, सामर्थ्य है. पर हम इसके अलावा कुछ भी नहीं बदल सकते. ना
तो इस देश को ना देशवासियों के नियति को, ना ही इसको चलाने वालों की नीयत
को. अपने भीतर इतिहास, कुछ खुशियां और बहुत सारा दर्द लिए यह साल भी सालता
हुआ बीत जाने का आतुर है. इस साल ही तो आम और खास के बीच की खाई और गहरी
हुई है. इस साल ही तो सत्ता चलाने वाले कुछ ज्यादा ही गूंगे और बहरे हुए
हैं. इसी साल तो संवेदनाएं आईसीयू में जाती दिखीं. इसी साल तो साढ़े छह दशक
का दर्द गुस्सा बनकर सड़कों पर उतरा. इसी साल तो इतिहास के पन्नों में
सिमटे जन आंदोलन प्रसव पीड़ा से अकुलाए हैं. और इसी साल तो इंसानियत की भी
बेरहमी से हत्या हुई है. इसी साल तो चुप्पियों ने तकलीफ पहुंचाया. इसी साल
2012 ने इंडिया और भारत के बीच की दूरियों को भी बढ़ाया. इंडिया सैकड़ों
रुपये का खाना अपनी प्लेटों में छोड़ता रहा वहीं भारत के लोगों को पेट
भरने लिए 26 रुपये पर्याप्त साबित हुआ. खैर. उम्मीद है कि नया साल सबके
लिए शुभ होगा.
बुधवार, 2 जनवरी 2013
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