बुधवार, 9 जनवरी 2013

यादें

यादों की शाम कहीं ना ढल जाए
चांद की सूरत-सीरत ना बदल जाए
चांदनी ना बन जाए पांवों की बेडि़यां
चल यहां से कहीं दूर निकल जाएं

तस्‍वीर देख कहीं मन ना मचल जाए
रिश्‍तों पर जमी ब‍र्फ ना पिघल जाए
पिला दो पैमाने मयखाने में  
बेहोश होने से पहले जरा हम संभल जाएं

जिंदगी किसी के साथ देखना ना खल जाए
बरबाद सपने इरादों में ना पल जाए
हमें भी एक झूठी कहानी सुना दे दोस्‍त
शायद मेरा भी मन थोड़ा बहल जाए..

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